अघोरी साधुओं की मायावी व रहस्यमयी दुनिया की के अनजाने तथ्य

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क्या आपने अघोरी साधुओं के बारे में सुना है? आप उनके बारे में क्या जानते है ? Who is Aghori अघोरी कौन होते है – Aghori kon hote hai? कैसा जीवन जीते है – Life of Aghori? कौनसी साधना करते है Aghori Sadhna ? अघोरियों से जुड़े रहस्यमयी तथ्य – Mysterious Facts of Aghories? तो जानते है “About Aghori in Hindi…”

Mysterious Facts of Aghories

दोस्तों माना जाता है कि शमशान जिन्दगी का आखिरी पड़ाव होता है जिसके बाद दुनिया की सारी चीज़े बेमतलब हो जाती है। लेकिन इसी श्मशान में मुर्दों के बीच कुछ जिन्दगियाँ भी रहती है जो मुर्दों में ही जिन्दगी तलाशती है। जब पूरी दुनिया सो जाती है तो ये जागते है अपनी साधना में। इनकी अपनी खुद की एक अलग ही मायावी दुनिया है। जहाँ इनके लिये इंसानी खोपड़ी शराब पीने का प्‍याला होता है और मूर्दा निवाला। श्‍मशान बिस्‍तर बन जाती है और चिता चादर। तो आज हम ऐसे लोगों की जिंदगी से पर्दा उठाएंगे जिनकी खुद की जिंदगी सदियों से रहस्‍य के पर्दे में है। हम बात कर रहे हैं श्‍मशान की साधाना में इंसानी चोलों को उतारकर फेंक देने वाले “अघोरियों” की। अघोरी हमेशा से लोगों की जिज्ञासा का विषय रहे हैं। तो आज रहस्यमयी दुनिया के इस लेख में हम आपको बताएँगे अघोरियों के बारे में कि अघोरी कौन होते है, अघोरी क्या करते है, अघोरी कैसे रहते है, अघोरियों की साधना के क्या नियम है, अघोरी कितने ख़तरनाक होते है आदि।

कौन है अघोरी ?

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हिन्दू धर्म में एक “शैव संप्रदाय” है जो “शिव साधक” से सम्बंधित है। इसी सम्प्रदाय में साधना की एक रहस्यमयी शाखा है “अघोरपंथ” जिसका पालन करने वालों को अघोरी कहते हैं। अघोरियों को इस पृथ्वी पर भगवान शिव का जीवित रूप भी माना जाता है क्योंकि शिवजी के पांच रूपों में से एक रूप अघोर रूप है। अघोरियों का जीवन जितना कठिन है, उतना ही रहस्यमयी भी। उनकी अपनी शैली है, अपना विधान है और अपनी अलग साधना विधियां हैं, जो कि सबसे ज्यादा रहस्यमयी होती है। अघोरियों की दुनिया ही नहीं, उनकी हर बात निराली है। वे जिस पर प्रसन्न हो जाएं उसे सब कुछ दे देते हैं।

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अघोरी की कल्पना की जाए तो श्मशान में तंत्र क्रिया करने वाले किसी ऐसे साधु की तस्वीर जेहन में उभरती है जिसकी वेशभूषा डरावनी होती है। अघोरी को कुछ लोग ओघड़ भी कहते हैं। अघोरियों को डरावना या खतरनाक साधु समझा जाता है लेकिन अघोर का अर्थ है अ+घोर यानी जो घोर नहीं हो अर्थात जो डरावना नहीं हो, जो सरल हो, जिसके मन में कोई भेदभाव नहीं हो। अघोरी हर चीज में समान भाव रखते हैं। ब्रह्माण्ड में व्याप्त समस्त तत्वों में सम भाव रखना, निर्मल तथा घृणित सभी वस्तुओं में ब्रह्म की अनुभूति करना ही इनके साधन पद्धति का मुख्य उद्देश्य हैं। वे सड़ते जीव के मांस को भी उतना ही स्वाद लेकर खाते हैं, जितना स्वादिष्ट पकवानों को स्वाद लेकर खाया जाता है। इस चराचर जगत में व्याप्त प्रत्येक वास्तु फिर वह जीवित हो या मृत, पवित्र हो या अपवित्र, सड़ा हो या पुष्ट सभी में ब्रह्म तत्व या ईश्वर का अनुभव करना पड़ता हैं, प्रत्येक वास्तु ईश्वर द्वारा ही निर्मित हैं। कहते हैं कि सरल बनना बड़ा ही कठिन होता है। सरल बनने के लिए ही अघोरी कठिन रास्ता अपनाते हैं। साधना पूर्ण होने के बाद अघोरी हमेशा-हमेशा के लिए हिमालय में लीन हो जाता है।

अघोरियों के बारे में कई बातें ऐसी हैं जिनके बारे में सुनकर आप दांतों तले अंगुली दबा लेंगे। आज के इस लेख में हम आपको अघोरियों की दुनिया की कुछ ऐसी ही रहस्यमयी बातें बता रहे हैं, जिनको पढ़कर आपको एहसास होगा कि वे कितनी कठिन साधना करते हैं। तो चलिए जानते है अघोरियों के बारे में रोचक बातें-

अघोरियों की रहस्यमयी दुनिया की कुछ रोचक बातें

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अघोरियों द्वारा की जाने वाली साधनायें –

अघोरी श्‍मशान घाट में तीन तरह से साधना करते हैं- श्‍मशान साधना, शव साधना और शिव साधना। इन साधनाओं को करने के अलावा संसार में इनका कोई और लक्ष्य नहीं होता और साधना के बाद या अन्य समय में ये अघोरी हिमालय के जंगलों में निवास करते हैं।

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1. शव साधना :

बहुत से तांत्रिक पुस्तकों या आगम ग्रंथों में शव-साधना का वर्णन पाया जाता हैं, मृत शरीर या बच्चों की समधी के ऊपर बैठकर साधना करना शव-साधना कहलाता हैं। नदी किनारे या श्मशान स्थित बिल्व वृक्ष के निचे, उत्तर दिशा की ओर चांडाल के मृत देह के ऊपर बैठकर साधना करने को वीर साधना में सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण बताया गया हैं। शव साधना विशेष समयकाल में और भी महत्वपूर्ण हो जाती है। इसके लिए कृष्ण पक्ष की अमावस्या या शुक्ल पक्ष अथवा कृष्णपक्ष की चतुर्दशी सबसे उपयुक्त मानी गयी है।

शव-साधना का अर्थ है, श्मशान में स्वयं के शरीर की अनुभूति को शव के समान निःसत्व करके, अपने उद्देश्य की मानसिक रूप से साधना करना है। माना जाता है कि इस साधना को करने के बाद मुर्दा बोल उठता है और आपकी इच्छाएं पूरी करता है।

शव साधना के लिए किसी शव का होना आवश्यक है। अघोरी यदि पुरुष है, तो उसे साधना के लिए स्त्री के शव की आवश्यकता होगी और यदि अघोरी स्त्री है तो शव साधना के लिए पुरुष का शव आवश्यक है। इसमें दो बातों का प्रमुख रूप से ध्यान रखा जाता है। प्रथम बात तो शव साधना के लिए जरुरी है कि जिस व्यक्ति का शव उपयोग किया जा रहा है पहले उससे अनुमति ली जाये, अन्यथा यह अघोरी के लिए मुसीबत भी बन सकता है। दूसरा शव का चयन करते समय इस बात का विशेष ध्यान रखना आवश्यक है कि शव किस श्रेणी का है। किसी चांडाल, दुर्घटना में मरे हुए व्यक्ति या फिर अकारण मरने वाले युवा का शव, शवसाधना के लिए अधिक उपयुक्त माना जाता है। इसका कारण यह है कि अकारण मौत की वजह से उस व्यक्ति की आत्मा आसपास ही होती है और वह अघोरी की मदद करती है।

कहा जाता है कि शव साधना आसान नहीं है। क्योंकि इस साधना को करते समय श्मशान में कई दृश्य और अदृश्य बाधाएं आती हैं, जिन्हें हटाना एक सिद्ध और जानकार अघोरी अच्छी तरह से जानता है। साधना के पूर्व ही अघोरी को संबंधित स्थान को भूत-प्रेतों और अन्य बाधाओं से सुरक्षित रखना होता है, ताकि वे साधना के बीच में विघ्‍न पैदा न कर सके। इसके लिए अग्नि तो होती ही है, अघोरी मंत्रोच्चार करते हुए आसपास एक लकीर खींचते हुए एक घेरा बनाता है और साथ ही तुतई बजाता है जिससे भूत-प्रेत या कोई भी बाधा प्रवेश न कर सके। इसके बाद विधि-विधान से साधना आरंभ की जाती है। जिस शव की साधना की जानी है उसे स्नान करवाकर, कपड़े से पोंछकर उस पर सुगंधित तेलों का छिड़काव किया जाता है। लाल चंदन का लेप किया जाता है। शव के उदर पर यंत्र बनाकर, उदर पर बैठकर यह साधना की जाती है। साधना में लगातार मंत्रोच्चार और क्रिया जारी रहती है। चारों दिशाओं में रक्षा हेतु गुरु, बटुक भैरव, योगिनी और श्रीगणेश की आराधना भी की जाती है। भैरव और भैरवी की साधना भी इसमें आवश्यक मानी जाती है। वहीं सभी दिशाओं के दि‍गपाल की आराधना भी आवश्यक है।

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भोग स्वरुप बकरे या मुर्गे की बलि देने के साथ ही शराब चढ़ाना भी अनिवार्य होता है। शव को भी यह चीजें अर्पित की जाती है। कुछ ही समय में देखते ही देखते य‍ह भोग समाप्त हो जाता है। आधी रात बीतेते-बीतते शव की आंखें भी विचलित होने लगती है और उसके शरीर में कई परिवर्तन एक साथ देखे जा सकते हैं। लेकिन इन भयावह और खतरनाक दृश्यों को देखते हुए भी साधक का मन लक्ष्य से नहीं हटना चाहिए। उसे मंत्रोच्चार जारी रखने होते हैं ताकि साधना को पूर्ण किया जा सके। इस साधना के पूर्ण होते-होते मुर्दा या शव भी बोलने लगता है। साधना पूर्ण होने पर साधक वह सिद्धी प्राप्त कर लेता है जिसके लिए वह शव साधना कर रहा था। ऐसा बोला जाता है कि यदि कोई अज्ञानी व्यक्ति इस साधना को करता है तो शव उसकी जान तक ले सकता है। यह साधना इतनी शक्तिशाली है कि यदि सफल हो जाये तो साधक देवताओं से भी ज्यादा अधिक शक्तिशाली हो जाता है। वह नाम लेकर व्यक्ति की मृत्यु तक कर सकता है। शव साधना को खुले में बिल्कुल नहीं किया जा सकता है। हिमालय की गुफाओं में बैठकर बाबा और अघोरी शव साधना कर रहे होते हैं। ऐसा माना जाता है कि इसके इतने शक्तिशाली होने के कारण ही भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरु ने इस पर रोक लगा दी थी। हालांकि इस बात का कोई प्रमाण नहीं है।

आप बेशक इस साधना को मजाक में लें किन्तु इस साधना की सच्चाई और सत्यता के प्रमाण शास्त्रों में लिखे हुए हैं। शव साधना के लिए सबसे जरुरी है कि आपको सही समय और सही मुहूर्त में यह साधना करनी होती है। आज भी हिमालय के जंगलों में नवरात्रों के समय अघोरी शव साधना करते हैं। यह साधना बैन है इसलिए अघोरी छुपकर इस तरह की साधना करते हैं। इस प्रकार शव साधना जैसी शक्तिशाली साधना करने से हर कोई डरता भी है। अतः यह साधना करना हर किसी के वश की बात भी नहीं है।

2. शिव साधना :

यह भी शव साधना की ही तरह होती है। इसमें शव के ऊपर पैर रखकर खड़े रहकर साधना की जाती है। इस साधना का मूल शिव की छाती पर पार्वती द्वारा रखा हुआ पांव है। ऐसी साधनाओं में मुर्दे को प्रसाद के रूप में मांस और मदिरा चढ़ाया जाता है।

3. श्‍मशान साधना :

शव और शिव साधना के अतिरिक्त तीसरी साधना होती है श्‍मशान साधना, जिसमें आम परिवारजनों को भी शामिल किया जा सकता है। इस साधना में मुर्दे की जगह शवपीठ की पूजा की जाती है। उस पर गंगा जल चढ़ाया जाता है। यहां प्रसाद के रूप में भी मांस-मंदिरा की जगह मावा चढ़ाया जाता है।

अघोरी शव साधना के लिए शव कहाँ से लाते है?

हिन्दू धर्म में आज भी किसी 5 साल से कम उम्र के बच्चे, सांप काटने से मरे हुए लोगों, आत्महत्या किए लोगों का शव जलाया नहीं जाता बल्कि दफनाया या गंगा में प्रवाहित कर कर दिया जाता है। पानी में प्रवाहित ये शव डूबने के बाद हल्के होकर पानी में तैरने लगते हैं। अक्सर अघोरी तांत्रिक इन्हीं शवों को पानी से ढूंढ़कर निकालते और अपनी तंत्र सिद्धि के लिए प्रयोग करते हैं।

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अघोरपंथ तांत्रिकों के तीर्थस्थल –

आज भी ऐसे अघोरी और तंत्र साधक हैं जो पराशक्तियों को अपने वश में कर सकते हैं। ये साधनाएं श्मशान में होती हैं और दुनिया में सिर्फ चार श्मशान घाट ही ऐसे हैं जहां तंत्र क्रियाओं का परिणाम बहुत जल्दी मिलता है। अघोरपंथ के अघोरी साधु इन चार स्थानों पर ही शव और श्मशान साधना करते हैं। ये हैं तारापीठ का श्मशान (पश्चिम बंगाल), कामाख्या पीठ (असम) काश्मशान, त्र्र्यम्बकेश्वर (नासिक) और उज्जैन (मध्य प्रदेश) का श्मशान। चार स्थानों के अलावा वे शक्तिपीठों, बगलामुखी, काली और भैरव के मुख्य स्थानों के पास के श्मशान में साधना करते हैं। यदि आपको पता चले कि इन स्थानों को छोड़कर अन्य स्थानों पर भी अघोरी साधना करते हैं तो यह कहना होगा कि वे अन्य श्मशान में साधना नहीं करते बल्कि यात्रा प्रवास के दौरान वे वहां विश्राम करने रुकते होंगे या फिर वे ढोंगी होंगे।

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1. तारापीठ का श्मशान (पश्चिम बंगाल) :

पश्चिम बंगाल के वीरभूमि जिले में (कोलकाता से 180 किलोमीटर) एक एक छोटा सा शहर है रामपुरहाट। जहाँ स्थित है तारा देवी का मंदिर। इस मंदिर में मां काली का एक रूप तारा मां की प्रतिमा स्थापित है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार यहां पर देवी सती के नेत्र गिरे थे। इसलिए इस स्थान को नयन तारा भी कहा जाता है। तारापीठ मंदिर का प्रांगण श्मशान घाट के निकट स्थित है, इसे महाश्मशान घाट के नाम से जाना जाता है। इस महाश्मशान घाट को अघोर तांत्रिकों का तीर्थ कहा जाता है। यहां आपको हजारों की संख्या में अघोर तांत्रिक मिल जाएंगे। तंत्र साधना के लिए यह जानी-मानी जगह है और इस महाश्मशान घाट में जलने वाली चिता की अग्नि कभी बुझती नहीं है। कालीघाट को तांत्रिकों का गढ़ माना जाता है, लेकिन यहां आने पर लोगों को किसी प्रकार का भय नहीं लगता है। मंदिर के चारों ओर द्वारका नदी बहती है। इस श्मशान में दूर-दूर से साधक साधनाएं करने आते हैं।

2. कामाख्या पीठ के श्मशान (असम) :

कामाख्या पीठ भारत का प्रसिद्ध शक्तिपीठ है, जो असम में गुवाहाटी रेलवे स्टेशन से 10 किलोमीटर दूर नीलांचल अथवा नीलशैल पर्वतमालाओं पर स्थित है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार यहीं मां भगवती की महामुद्रा (योनि-कुण्ड) स्थित है। मां भगवती कामाख्या का यह सिद्ध शक्तिपीठ माता सती के इक्यावन शक्तिपीठों में सर्वोच्च स्थान रखता है।  प्राचीनकाल से सतयुगीन तीर्थ कामाख्या वर्तमान में तंत्र-सिद्धि का सर्वोच्च स्थल है। कालिका पुराण तथा देवीपुराण में “कामाख्या शक्तिपीठ” को सर्वोत्तम कहा गया है । यह स्थान तांत्रिकों के लिए स्वर्ग के समान है और तांत्रिकों का गढ़ कहा जाता है। यहां स्थित श्मशान में भारत के विभिन्न स्थानों से तांत्रिक तंत्र सिद्धि प्राप्त करने आते हैं।

3. त्रयम्बकेश्वर का श्मशान (नासिक) :

महाराष्ट्र के नासिक जिले में त्रयम्बकेश्वर ज्योतिर्लिंग मन्दिर स्थित है। यह ज्योतिर्लिंग यहां के ब्रह्मगिरि पर्वत पर स्थित है जहाँ से गोदावरी नदी का उद्गम स्थल है। मंदिर के अंदर एक छोटे से गड्ढे में तीन छोटे-छोटे लिंग है, जो ब्रह्मा, विष्णु और शिव – इन तीनों देवों के प्रतीक माने जाते हैं। भगवान शिव को तंत्र शास्त्र का देवता माना जाता है। तंत्र और अघोरवाद के जन्मदाता भगवान शिव ही हैं। यहां स्थित श्मशान भी तंत्र क्रिया के लिए प्रसिद्ध है।

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4. चक्रतीर्थ का श्मशान (उज्जैन) :

मध्य प्रदेश के उज्जैन जिले में स्थित है भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक महाकालेश्वर मंदिर। इस स्थान को चक्रतीर्थ नाम से जाना जाता है स्वयंभू, भव्य और दक्षिणमुखी होने के कारण महाकालेश्वर महादेव की अत्यन्त पुण्यदायी माना जाता है। इस कारण तंत्र शास्त्र में भी शिव के इस शहर को बहुत जल्दी फल देने वाला माना गया है। यहां के श्मशान में दूर-दूर से साधक तंत्र क्रिया करने आते हैं। उज्जैन में काल भैरव और विक्रांत भैरव भी तांत्रिकों का मुख्य स्थान माना जाता है।

अघोरी का रूप लेकर कानून से बचते हैं शातिर मुजरिम-

मूर्दों के बीच मंडराते अघोरी दुनिया के किसी भी बुराई को बुरा नहीं कहते। अघोरियों के बारे में लोगों को जितनी जानकारी हैं उससे कहीं ज्‍यादा अफवाह। लोग अघोरियों से बहुत ज्यादा डरते है और उनसे मिलने व पास आने से भी कतराते है। शायद यहीं कारण है कि आजकल बहुत से शातिर मुजरिम अघोरी का रूप लेकर कानून को चकमा दे रहे हैं। ये खुद को इस कदर ढाल चुके होते हैं कि इनके तक पहुंचना सबके बूते की बात नहीं होती। पुलिस भी अघोरियों को पकड़ने से बचती है इसलिए ये मुजरिम पुलिस की पहुँच से बाहर रहते है। यही कारण है कि आजकल ढोंगी अघोरी साधु ज्यादा घूमते है। इसलिए हो सके तो इस तरह के ढोंगी अघोरियों से बचकर रहे।

।। धन्यवाद ।।

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